का'बे में तो सिद्क़ और सफ़ा को पाया
बुत-ख़ाने में नाज़ और अदा को पाया
हासिल न हुआ कहीं से दिल का मक़्सद
जब ख़ुद ही में ढूँढा तो ख़ुदा को पाया
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(615) Peoples Rate This
गिरजा में गए तो पारसाई देखी
गुज़िश्ता साल जो देखा वो अब की साल नहीं
जब तक है शबाब-ए-साज़गार-ए-दौलत
पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा
इसी ख़याल में दिन-रात मैं तड़पता हूँ
रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
पीरी में ख़ाक ज़िंदगानी का मज़ा
है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे
दौलत ने मुआ'विनत जो की तो क्या की
देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर
जब जवानी गई छुड़ा कर हाथ