नहीं है टूटे की बूटी जहान में पैदा
शिकस्ता जब हुआ तार-ए-नफ़स नहीं चलता
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दूर हम से हैं वो तो क्या डर है
गुज़िश्ता साल जो देखा वो अब की साल नहीं
पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा
दौलत ने मुआ'विनत जो की तो क्या की
अदम से हस्ती में जब हम आए न कोई हमदर्द साथ लाए
शौक़ ने की जो रहबरी दिल की
जहाँ में ज़र का है कारख़ाना न कोई अपना न है यगाना
इसी ख़याल में दिन-रात मैं तड़पता हूँ
रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
क्या वस्फ़ लिखूँ ज़ुल्फ़-ए-सियह की लट का
कुछ तेरा समर न ऐ जवानी पाया
तुम्हारे इश्क़ में क्या क्या न इख़्तियार किया