जान पर अपनी हाए क्यूँ बनती
बात जो मानते कभी दिल की
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(724) Peoples Rate This
तुम्हारे इश्क़ में क्या क्या न इख़्तियार किया
का'बे में तो सिद्क़ और सफ़ा को पाया
इसी ख़याल में दिन-रात मैं तड़पता हूँ
ज़र्रे की तरह ख़ाक में पामाल हो गए
है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे
देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर
रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
उस माह-रू पे आँख किसी की न पड़ सकी
दूर हम से हैं वो तो क्या डर है
जब तक है शबाब-ए-साज़गार-ए-दौलत