दूर हम से हैं वो तो क्या डर है
पास है अपने आरसी दिल की
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गुज़िश्ता साल जो देखा वो अब की साल नहीं
हवा के घोड़े पे रहता है वो सवार मुदाम
पीरी में ख़ाक ज़िंदगानी का मज़ा
दौलत ने मुआ'विनत जो की तो क्या की
है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे
इसी ख़याल में दिन-रात मैं तड़पता हूँ
कुछ तेरा समर न ऐ जवानी पाया
जब जवानी गई छुड़ा कर हाथ
ज़र्रे की तरह ख़ाक में पामाल हो गए
देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर
क्या वस्फ़ लिखूँ ज़ुल्फ़-ए-सियह की लट का