रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
यही है हुक्म-ए-इलाही तो बस नहीं चलता
हवा के घोड़े पे रहता है वो सवार मुदाम
किसी का उस के बराबर फ़रस नहीं चलता
गुज़िश्ता साल जो देखा वो अब के साल नहीं
ज़माना एक सा बस हर बरस नहीं चलता
नहीं है टूटे की बूटी जहान में पैदा
शिकस्ता जब हुआ तार-ए-नफ़स नहीं चलता
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