कि इस से पहले ख़िज़ाँ का शिकार हो जाऊँ

कि इस से पहले ख़िज़ाँ का शिकार हो जाऊँ

सजा लूँ ख़ुद को मुकम्मल बहार हो जाऊँ

उतारने को पहाड़ों से धूप घाटी में

मैं कोई चीड़ कोई देवदार हो जाऊँ

नहीं हूँ तुझ से मैं वाबस्ता ऐ जहाँ लेकिन

ये सोचता हूँ कि अब होशियार हो जाऊँ

न भाए लोग यहाँ के न शहर ही ये मुझे

मगर मैं ख़ुद से ही कैसे फ़रार हो जाऊँ

भले हों तैश में लहरें मगर किसे परवाह

मैं कूद जाऊँ तो दरिया के पार हो जाऊँ

कोई जवाब तो सूरज के ज़ुल्म का भी हो

मैं बारिशों की जो ठंडी फुवार हो जाऊँ

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Ki Is Se Pahle KHizan Ka Shikar Ho Jaun In Hindi By Famous Poet Gautam Rajrishi. Ki Is Se Pahle KHizan Ka Shikar Ho Jaun is written by Gautam Rajrishi. Complete Poem Ki Is Se Pahle KHizan Ka Shikar Ho Jaun in Hindi by Gautam Rajrishi. Download free Ki Is Se Pahle KHizan Ka Shikar Ho Jaun Poem for Youth in PDF. Ki Is Se Pahle KHizan Ka Shikar Ho Jaun is a Poem on Inspiration for young students. Share Ki Is Se Pahle KHizan Ka Shikar Ho Jaun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.