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इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है - गौतम राजऋषि कविता - Darsaal

इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है

इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है

सब को ये मगर राज़ बताया न गया है

पर्दे की कहानी है ये पर्दे की ज़बानी

बस इस लिए पर्दे को उठाया न गया है

हैं भेद कई अब भी छुपे क़ैद रपट में

कुछ नाम थे शामिल सो दिखाया न गया है

अम्बर की ये साज़िश है अजब चाँद के बदले

दूजे किसी सूरज को उगाया न गया है

हर्फ़ों की ज़बानी हो बयाँ कैसे वो क़िस्सा

लिक्खा न गया है जो सुनाया न गया है

कुछ अहल-ए-ज़बाँ आए तो हैं देने गवाही

आँखों से मगर ख़ौफ़ का साया न गया है

ये रात है नाराज़ जो देखा कि हवा से

दो एक चराग़ों को बुझाया न गया है

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