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हवा जब किसी की कहानी कहे है - गौतम राजऋषि कविता - Darsaal

हवा जब किसी की कहानी कहे है

हवा जब किसी की कहानी कहे है

नए मौसमों की ज़बानी कहे है

फ़साना है जिस्मों का बे-शक ज़मीनी

मगर रूह तो आसमानी कहे है

तुझे चल ज़रा सा मैं मीठा बना दूँ

समुंदर से दरिया का पानी कहे है

डसा रत-जगों ने है ख़्वाबों को फिर से

सुलगती हुई रात-रानी कहे है

लटें चंद चाँदी की बख़्शीं तुझे जा

विदाअ' लेती मुझ से जवानी कहे है

है चढ़ने लगी फिर से ढलती हुई उम्र

तिरी शर्ट ये ज़ाफ़रानी कहे है

नई बात हो अब नए गीत छेड़ो

गुज़रती घड़ी हर पुरानी कहे है

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