उजले मैले पेश हुए
जैसे हम थे पेश हुए
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अपना दुखड़ा कहते हैं
नाव न डूबी दरिया में
मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था
दिल तमाम आईने तीरा कौन रौशन कौन
सर पर कोई आसमान रख दे
फूलों में वही तो फूल ठहरा
लोग किनारे आन लगे
इक साया-ए-शाम याद आया
जाती रुत से प्यार करोगे
शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की
हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं
दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे