फूलों में वही तो फूल ठहरा
जो तेरे सलाम को खिला हो
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कहाँ वो ज़ब्त के दावे कहाँ ये हम 'गौहर'
दिल तमाम आईने तीरा कौन रौशन कौन
शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की
यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है
लोग किनारे आन लगे
इक साया-ए-शाम याद आया
समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे
मता-ए-इश्क़ ज़रा और सर्फ़-ए-नाज़ तो हो
हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं
दरिया में ये नाव किस तरफ़ है