लोग किनारे आन लगे
और किनारा डूब गया
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जाती रुत से प्यार करोगे
यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
दरिया में ये नाव किस तरफ़ है
नाव न डूबी दरिया में
अपना दुखड़ा कहते हैं
ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है
इक साया-ए-शाम याद आया
दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे
हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं
मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो
शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की
कैसे डूबा डूब गया