लहजा तो बदल चुभती हुई बात से पहले
तीर ऐसा तो कुछ हो जिसे नख़चीर भी चाहे
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1247) Peoples Rate This
बंदों का मिज़ाज हम ने देखा
कहाँ वो ज़ब्त के दावे कहाँ ये हम 'गौहर'
ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है
दरिया में ये नाव किस तरफ़ है
उजले मैले पेश हुए
अपना दुखड़ा कहते हैं
जाती रुत से प्यार करोगे
दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे
यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
सर पर कोई आसमान रख दे