यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
ज़माना गया आइना रह गया
वो हुस्न-ए-सरापा वो हुस्न-आफ़रीं
मगर हर कोई देखता रह गया
चलो क्या हुआ रौशनी ही तो थी
यहाँ देखने को भी क्या रह गया
हमारी कुछ अपनी रिवायत भी थी
किताबों में लिक्खा हुआ रह गया
ख़ुदाई को भी हम न ख़ुश रख सके
ख़ुदा भी ख़फ़ा का ख़फ़ा रह गया
मुक़द्दर कहीं कज-कुलाही करे
कोई घर में महव-ए-दुआ रह गया
कहीं एक चुप भी रसा हो गई
कोई बोलता बोलता रह गया
(873) Peoples Rate This