शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की
शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की
शर्त ही और है शाइस्ता-ए-फ़न होने की
मैं कि हर-दम मुझे बालीदगी-ए-रूह की फ़िक्र
रूह को फ़िक्र है वारस्ता-ए-तन होने की
रम-ब-रम सिलसिला-ए-मौज-ए-ग़ज़ालान-ए-ख़याल
दश्त-ए-ग़ुर्बत को बशारत हो वतन होने की
परतव-ए-रंग से गुलगूँ हुआ मामूरा-ए-चश्म
धूम है कू-ए-तमाशा के चमन होने की
हक़-परस्ती को यहाँ कौन है आमादा-ए-दार
किस को तौफ़ीक़ है बे-गोर-ओ-कफ़न होने की
या बचेगा न सहर तक कोई दरमाँदा-ए-शब
या सहर ही नहीं ख़ाकम-ब-दहन होने की
दर्द की साल-गिरह ख़ैर से गुज़रे 'गौहर'
आ गई रात वही चाँद-गहन होने की
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