है जो भी जज़ा सज़ा अता हो
है जो भी जज़ा सज़ा अता हो
होना है जो आज बरमला हो
उस दिन भी जो सर पे धूप चमकी
जिस दिन पे बहुत फ़रेफ़्ता हो
उस रात भी नींद अगर न आई
जिस रात पे इस क़दर फ़िदा हो
रंगों में वही तो रंग निकला
जो तेरी नज़र में जच गया हो
फूलों में वही तो फूल ठहरा
जो तेरे सलाम को खिला हो
इक शख़्स ख़ुदा बना हुआ है
क्या हो जो यही मिरा ख़ुदा हो
सौगंद मुझे ग़ज़ल की 'गौहर'
मैं ने जो ज़बाँ से कुछ कहा हो
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