नक़्श तीखे बाँकी चितवन दाँत मोती की क़तार
सुब्ह की लाली का मंज़र उस की रंगत का निखार
झूम कर रह रह के उस के खिलखिलाने का समाँ
फूल बरसाए हवा से जैसे शाख़-ए-हर-सिंघार
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खो के ख़ुद उन को पा के पीता हूँ
किस लिए अब हयात बाक़ी है
माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ
आसरा जब भी कोई टूटे है
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
सुब्ह हैं सज्दे में हम तो शाम साक़ी के हुज़ूर
ये महल ये माल ओ दौलत सब यहीं रह जाएँगे
अब क्या बताएँ क्या था समाँ पैरहन के बीच
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई
उन को सज्दा कर लिया महबूब की तस्वीर जान
दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह