किस लिए अब हयात बाक़ी है
क्या कोई वारदात बाक़ी है
'तर्ज़' कैसे कटेंगे ये लम्हात?
जाम ख़ाली है रात बाक़ी है
Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
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पूछा कैसे? तो हँस के फ़रमाया
रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही
आसरा जब भी कोई टूटे है
हल्क़ा-ए-मय से किसी को भी निकलने न दिया
मय-कशी का शबाब बाक़ी है
माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई
'दाग़' के शेर जवानी में भले लगते हैं
अब क्या बताएँ क्या था समाँ पैरहन के बीच