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कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच - गणेश बिहारी तर्ज़ कविता - Darsaal

कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच

कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच

हम भी मुजरिम की तरह ख़ामोश हैं यारों के बीच

क्या कहें किस ने बहारों को ख़िज़ाँ-सामाँ किया

देखने में तो सभी गुल-पोश हैं यारों के बीच

ये भी सच है घर के भेदी ने किया घर को तबाह

ये भी लगता है कि सब निर्दोश हैं यारों के बीच

क्या पता कब ख़ून का प्यासा यहाँ हो जाए कौन

यूँ तो कहने को सभी मय-नोश हैं यारों के बीच

हाँ चला अब साक़िया जादू भरी नज़रों के तीर

हम भी देखें किस क़दर ज़ी-होश हैं यारों के बीच

बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर

कितने हैं जो मय-कदा बर-दोश हैं यारों के बीच

'तर्ज़' पढ़ता है कोई जब झूम कर नज़्म ओ ग़ज़ल

ऐसा लगता है 'फ़िराक़' ओ 'जोश' हैं यारों के बीच

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