गणेश बिहारी तर्ज़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का गणेश बिहारी तर्ज़
नाम | गणेश बिहारी तर्ज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ganesh Bihari Tarz |
जन्म की तारीख | 1932 |
मौत की तिथि | 2008 |
जन्म स्थान | Lucknow |
उन को सज्दा कर लिया महबूब की तस्वीर जान
तल्ख़ियों में समा के पीता हूँ
समेट लो ज़रा आँचल कि रौशनी फैले
पूछा कैसे? तो हँस के फ़रमाया
नक़्श तीखे बाँकी चितवन दाँत मोती की क़तार
मय-कशी का शबाब बाक़ी है
लम्हा लम्हा मौत को भी ज़िंदगी समझा हूँ मैं
क्या ज़िद है कि बरसात भी हो और नहीं भी हो
किस लिए अब हयात बाक़ी है
खो के ख़ुद उन को पा के पीता हूँ
ख़ादिम-ए-उर्दू-ज़बाँ हूँ शाएरी मकतब मिरा
जिस्म-ए-शफ़्फ़ाफ़ में शोला सा रवाँ हो जैसे
हल्क़ा-ए-मय से किसी को भी निकलने न दिया
ग़म की तारीक फ़ज़ाओं से निकलने न दिया
अजनबी बन के हँसा करती है
अब क्या बताएँ क्या था समाँ पैरहन के बीच
आसरा जब भी कोई टूटे है
ये महल ये माल ओ दौलत सब यहीं रह जाएँगे
सुब्ह हैं सज्दे में हम तो शाम साक़ी के हुज़ूर
रात की रात बहुत देख ली दुनिया तेरी
पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ार
दिल-ए-ग़म-ज़दा पे गुज़र गया है वो हादसा कि मिरे लिए
'दाग़' के शेर जवानी में भले लगते हैं
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
अर्ज़-ए-दकन में जान तो दिल्ली में दिल बनी
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई
अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा
सामने आँखों के घर का घर बने और टूट जाए