Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_276c16a2906927876174c57ced951c9e, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे - ग़फ़्फ़ार बाबर कविता - Darsaal

सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे

सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे

वर्ना हम लोग कहाँ हुस्न-ए-नज़र तक पहुँचे

आज पलकों पे मिरी जश्न-ए-चराग़ाँ होगा

कितने अनमोल गुहर दीदा-ए-तर तक पहुँचे

मेरी रातों का अंधेरा भी दुआएँ देगा

इक सितारा जो उतर कर मिरे घर तक पहुँचे

कौन कहता है कि ख़ुर्शीद उतर कर आए

एक जुगनू ही मगर ख़ाक-बसर तक पहुँचे

जो भी आए तिरे कूचे में वो जाँ से गुज़रे

सर हथेली पे उठाए तिरे दर तक पहुँचे

है उसी साहिब-ए-मेराज का एहसान कि हम

ख़ाक हो कर भी मगर शम्स-ओ-क़मर तक पहुँचे

मैं अँधेरों का मुसाफ़िर हूँ उजालों का नक़ीब

किस की जुरअत है मिरी गर्द-ए-सफ़र तक पहुँचे

उँगलियाँ पहले क़लम करना पड़ेंगी 'बाबर'

फिर ये मुमकिन है क़लम हर्फ़-ए-हुनर तक पहुँचे

(694) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sar Kiya Zulf Ki Shab Ko To Sahar Tak Pahunche In Hindi By Famous Poet Gaffar Babar. Sar Kiya Zulf Ki Shab Ko To Sahar Tak Pahunche is written by Gaffar Babar. Complete Poem Sar Kiya Zulf Ki Shab Ko To Sahar Tak Pahunche in Hindi by Gaffar Babar. Download free Sar Kiya Zulf Ki Shab Ko To Sahar Tak Pahunche Poem for Youth in PDF. Sar Kiya Zulf Ki Shab Ko To Sahar Tak Pahunche is a Poem on Inspiration for young students. Share Sar Kiya Zulf Ki Shab Ko To Sahar Tak Pahunche with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.