तअल्लुक़ात का तन्क़ीद से है याराना
किसी का ज़िक्र करे कौन एहतिसाब के साथ
Anwar Masood
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Ahmad Faraz
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Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
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दिल यूँ तो गाह गाह सुलगता है आज भी
छू भी तो नहीं सकते हम मौज-ए-सबा बन कर
मैं और मिरी ज़ात अगर एक ही शय हैं
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'
है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी
घर से बे-ज़ार हूँ कॉलेज में तबीअ'त न लगे
किस दर्द से रौशन है सियह-ख़ाना-ए-हस्ती
सुब्ह तक हम रात का ज़ाद-ए-सफ़र हो जाएँगे
घर से बाहर नहीं निकला जाता
कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं
लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए
तिरी बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं