है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी

है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी

सच है शायद कि हमें उस से मोहब्बत भी न थी

ज़िंदगी और पुर-असरार हुई जाती है

इश्क़ का साथ न होता तो शिकायत भी न थी

तुझ से छुट कर न कभी प्यार किसी से करते

दिल के बहलाने की लेकिन कोई सूरत भी न थी

घोर-अँधेरों में ख़ुद अपने को सदा दे लेते

राह चलते हुए लोगों में ये जुरअत भी न थी

ज़िद में दुनिया की बहर-हाल मिला करते थे

वर्ना हम दोनों में ऐसी कोई उल्फ़त भी न थी

मर मिटे लोग सर-ए-रह-गुज़र-ए-इश्क़ 'फ़ुज़ैल'

अपने हिस्से में ये छोटी सी सआदत भी न थी

(712) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hai Ibarat Jo Gham-e-dil Se Wo Wahshat Bhi Na Thi In Hindi By Famous Poet Fuzail Jafri. Hai Ibarat Jo Gham-e-dil Se Wo Wahshat Bhi Na Thi is written by Fuzail Jafri. Complete Poem Hai Ibarat Jo Gham-e-dil Se Wo Wahshat Bhi Na Thi in Hindi by Fuzail Jafri. Download free Hai Ibarat Jo Gham-e-dil Se Wo Wahshat Bhi Na Thi Poem for Youth in PDF. Hai Ibarat Jo Gham-e-dil Se Wo Wahshat Bhi Na Thi is a Poem on Inspiration for young students. Share Hai Ibarat Jo Gham-e-dil Se Wo Wahshat Bhi Na Thi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.