भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई
भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई
आईना देखें तो चेहरे नज़र आते हैं कई
वो भी इक शाम थी जब साथ छुटा था उस का
वाहिमे दिल में सर-ए-शाम दर आते हैं कई
पाँव की धूल भी बन जाती है दुश्मन अपनी
घर से निकलो तो फिर ऐसे सफ़र आते हैं कई
क़र्या-ए-जाँ से गुज़रना भी कुछ आसान नहीं
राह में जाफ़री शीशे के घर आते हैं कई
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