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उमीद की कोई चादर तो सामने आए - फ़िरदौस गयावी कविता - Darsaal

उमीद की कोई चादर तो सामने आए

उमीद की कोई चादर तो सामने आए

मैं रुक भी जाऊँ तिरा घर तो सामने आए

मैं राह-ए-इश्क़ में ख़ुद को फ़ना भी कर दूँगा

मरे हबीब वो मंज़र तो सामने आए

हमारे बाज़ू का दुनिया कमाल देखेगी

अदू का कोई भी लश्कर तो सामने आए

में एहतिराम से दस्तार इस के सर बाँधूँ

वो फ़न-शनास सुखनवर तो सामने आए

करूँगा उम्र भर उस पर मैं प्यार की बारिश

वो ख़ुश-जमाल सा पैकर तो सामने आए

सर-ए-नियाज़ झुकेगा ख़ुद उस के क़दमों में

वो ले के हाथ में ख़ंजर तो सामने आए

में एक संग हूँ मुझ में हैं सूरतें पिन्हाँ

मुझे तराशने आज़र तो सामने आए

फ़िदा-ए-इश्क़ हूँ मरने का डर नहीं 'फ़िरदौस'

मुझे डुबोने समुंदर तो सामने आए

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