Rubaais of Firaq Gorakhpuri
नाम | फ़िराक़ गोरखपुरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Firaq Gorakhpuri |
जन्म की तारीख | 1896 |
मौत की तिथि | 1982 |
ज़ुल्फ़ों से फ़ज़ाओं में अदाहट का समाँ
यूँ इश्क़ की आँच खा के रंग और खिले
ये शोला-ए-हुस्न जैसे बजता हो सितार
ये राज़-ओ-नियाज़ और ये समाँ ख़ल्वत का
वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार
तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है
सुन युग-ओ-युग की कहानी न उठा
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
सानी नहीं तेरा न कोई तेरी मिसाल
सहरा में ज़माँ मकाँ के खो जाती हैं
साग़र कफ़-ए-दस्त में सुराही ब-बग़ल
रक्षा-बंधन की सुब्ह रस की पुतली
क़तरे अरक़-ए-जिस्म के मोती की लड़ी
क़ामत है कि अंगड़ाइयाँ लेती सरगम
प्रेमी को बुख़ार उठ नहीं सकती है पलक
फूलों की सुहाग सेज ये जोबन रस
पाते जाना है और न खोते जाना
पनघट पे गगरियाँ छलकने का ये रंग
निखरे बदन का मुस्कुराना है है
नभ-मंडल गूँजता है तेरे जस से
मुखड़ा देखें तो माह-पारे छुप जाएँ
माँ और बहन भी और चहेती बेटी
महताब में सुर्ख़ अनार जैसे छूटे
लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम
क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
किस दर्जा सुकूँ-नुमा हैं अबरू के हिलाल