ये शोला-ए-हुस्न जैसे बजता हो सितार
हर ख़त्त-ए-बदन की लौ में मद्धम झंकार
रंगीन निगाह से खिल उठते हैं चमन
रस होंटों का पी के झूम उठती है बहार
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जुगनू
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है
ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
हिण्डोला
ये राज़-ओ-नियाज़ और ये समाँ ख़ल्वत का
वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार
महताब में सुर्ख़ अनार जैसे छूटे
कहती हैं यही तेरी निगाहें ऐ दोस्त
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा