वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार
बेचैनी की रूह को भी आता था प्यार
देखा है कर्ब के भी आलम में तुझे
होता था सुकून लाख जानों से निसार
Parveen Shakir
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हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा
रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो
जो रंग उड़ा वो रंग आख़िर लाया
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
सहरा में ज़माँ मकाँ के खो जाती हैं
वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है
हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा
आज़ादी
किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़