क़तरे अरक़-ए-जिस्म के मोती की लड़ी
है पैकर-ए-नाज़ कि फूलों की छड़ी
गर्दिश में निगाह है कि बटती है हयात
जन्नत भी है आज उमीदवारों में खड़ी
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
तिरी निगाह सहारा न दे तो बात है और
आधी रात
इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
यूँ इश्क़ की आँच खा के रंग और खिले
रात भी नींद भी कहानी भी
तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की