निखरे बदन का मुस्कुराना है है
रस के जौबन का गुनगुनाना है है
कानों की लवों का थरथराना कम कम
चेहरे के तिल का जगमगाना है है
Mir Taqi Mir
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कोई आया न आएगा लेकिन
चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है
कहती हैं यही तेरी निगाहें ऐ दोस्त
तेरे आने की क्या उमीद मगर
एक रंगीनी ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा उसी का है जहाँ में तुझ को
वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं
क़तरे अरक़-ए-जिस्म के मोती की लड़ी
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है