नभ-मंडल गूँजता है तेरे जस से
गुलशन खिलते हैं ग़म के ख़ार-ओ-ख़स से
संसार में ज़िंदगी लुटाता हुआ रूप
अमृत बरस रहा है जौबन-रस से
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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हर साँस में गुलज़ार से खिल जाते थे
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
ज़िंदगी में जो इक कमी सी है
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
यूँ इश्क़ की आँच खा के रंग और खिले
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
जुनून-ए-कारगर है और मैं हूँ
शाम-ए-अयादत
रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
जब किरनें हिमालिया की चोटी गूँधें
अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं