मुखड़ा देखें तो माह-पारे छुप जाएँ
ख़ुर्शीद की आँख के शरारे छुप जाएँ
रह जाना वो मुस्कुरा के तेरा कल रात
जैसे कुछ झिलमिला के तारे छुप जाएँ
Gulzar
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आँखों में जो बात हो गई है
'ईसा' के नफ़्स में भी ये एजाज़ नहीं
क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार
कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है
आ जा कि खड़ी है शाम पर्दा घेरे
मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
सहरा में ज़माँ मकाँ के खो जाती हैं
कोई आया न आएगा लेकिन
साँस लेती है वो ज़मीन 'फ़िराक़'
इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते