किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
कुछ तेवरी चढ़ाए हुए मुँह फेरे हुए
इस रूठने पर प्रेम का संसार निसार
कहती है कि जा तुझ से नहीं बोलेंगे
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आँखों में जो बात हो गई है
'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है
जो रंग उड़ा वो रंग आख़िर लाया
मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं
देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूम
हिण्डोला
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़