ग़ुंचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
मुतरिब कोई साज़ छेड़ जाए जैसे
यूँ फूट रही है मुस्कुराहट की किरन
मंदिर में चराग़ झिलमिलाए जैसे
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(759) Peoples Rate This
'फ़िराक़' दौड़ गई रूह सी ज़माने में
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम
बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
पाते जाना है और न खोते जाना
कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे
प्रेमी को बुख़ार उठ नहीं सकती है पलक
तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है
मौत का भी इलाज हो शायद
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो