गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
आँचल लटका हुआ हवाएँ बे-ख़ुद
पुर-कैफ़ शबाब से अदाएँ बे-ख़ुद
गाती हुई साँस से फ़ज़ाएँ बे-ख़ुद
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कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़
शाम-ए-अयादत
महताब में सुर्ख़ अनार जैसे छूटे
इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
पाते जाना है और न खोते जाना
रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं