आवाज़ पे संगीत का होता है भरम
करवट लेती है नर्म लय में सरगम
ये बोल सुरीले थरथराती है फ़ज़ा
अन-देखे साज़ का खनकना पैहम
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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Mohsin Naqvi
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लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
धीमा धीमा सा नूर जैसे तह-ए-साज़
मौत का भी इलाज हो शायद
बहुत हसीन है दोशीज़गी-ए-हुस्न मगर
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
जिस तरह नद्दी में एक तारा लहराए
रात भी नींद भी कहानी भी
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
जब चाँद की वादियों से नग़्मे बरसें
माँ और बहन भी और चहेती बेटी
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
ज़ुल्मत ओ नूर में कुछ भी न मोहब्बत को मिला