आँखों में वो रस जो पत्ती पत्ती धो जाए
ज़ुल्फ़ों के फ़ुसूँ से मार-ए-सुम्बुल सो जाए
जिस वक़्त तू सैर-ए-गुलिस्ताँ करता हो
हर फूल का रंग और गहरा हो जाए
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(995) Peoples Rate This
तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की
ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है
पनघट पे गगरियाँ छलकने का ये रंग
हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा
ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा
खुलता ही नहीं हुस्न है पिन्हाँ कि अयाँ
देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या
सहरा में ज़माँ मकाँ के खो जाती हैं