आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
बिखरी हैं लटें कि नींद में हैं काले
पहलू से लगा हुआ हिरन का बच्चा
किस प्यार से है बग़ल में गर्दन डाले
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मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ
तेरे आने की क्या उमीद मगर
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
जिस तरह रगों में ख़ून-ए-सालेह हो रवाँ
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन
बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है