ज़िंदगी में जो इक कमी सी है
ये ज़रा सी कमी बहुत है मियाँ
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रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
'ग़ालिब' ओ 'मीर' 'मुसहफ़ी'
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
अफ़्सुर्दा फ़ज़ा पे जैसे छाया हो हिरास
आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ