ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों
ऐ दोस्त तुझे कहाँ छुपा लें
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फूलों की सुहाग सेज ये जोबन रस
तेरे आने की क्या उमीद मगर
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
प्रेमी को बुख़ार उठ नहीं सकती है पलक
समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है
जुदाई
कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से