ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(4626) Peoples Rate This
इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
साग़र कफ़-ए-दस्त में सुराही ब-बग़ल
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात ओ ममात की
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था
तेरे आने की क्या उमीद मगर
चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है