तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए
मुद्दतों के बा'द देखा था तो आँसू आ गए
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जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
दोशीज़ा-ए-बहार मुस्कुराए जैसे
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
पनघट पे गगरियाँ छलकने का ये रंग
जुनून-ए-कारगर है और मैं हूँ
कुछ न पूछो 'फ़िराक़' अहद-ए-शबाब
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर