तिरी निगाह सहारा न दे तो बात है और
कि गिरते गिरते भी दुनिया सँभल तो सकती है
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इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
हर साँस में गुलज़ार से खिल जाते थे
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
ग़ुंचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
शाम-ए-अयादत
ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं