क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन
आज वो रब्त का एहसास कहाँ है कि जो था
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आवाज़ पे संगीत का होता है भरम
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
माँ और बहन भी और चहेती बेटी
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
नभ-मंडल गूँजता है तेरे जस से
तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था
दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया
जुदाई
यूँ इश्क़ की आँच खा के रंग और खिले
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो