माइल-ए-बेदाद वो कब था 'फ़िराक़'
तू ने उस को ग़ौर से देखा नहीं
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शाम-ए-अयादत
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले