कुछ न पूछो 'फ़िराक़' अहद-ए-शबाब
रात है नींद है कहानी है
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मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
जो रंग उड़ा वो रंग आख़िर लाया
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला
'ईसा' के नफ़्स में भी ये एजाज़ नहीं
प्रेमी को बुख़ार उठ नहीं सकती है पलक
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
जब किरनें हिमालिया की चोटी गूँधें
माँ और बहन भी और चहेती बेटी
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'