खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
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सुन युग-ओ-युग की कहानी न उठा
कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है
रात भी नींद भी कहानी भी
इस दौर में ज़िंदगी बशर की
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं