जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ
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इस दौर में ज़िंदगी बशर की
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
जिस में हो याद भी तिरी शामिल
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
आँखों में जो बात हो गई है
इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
फूलों की सुहाग सेज ये जोबन रस
शाम-ए-अयादत
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
आधी रात
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं