इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
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नभ-मंडल गूँजता है तेरे जस से
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
जब किरनें हिमालिया की चोटी गूँधें
मैं देर तक तुझे ख़ुद ही न रोकता लेकिन
जो रंग उड़ा वो रंग आख़िर लाया
बन-बासियों में जलव-ए-गुलशन ले कर
आँखों में वो रस जो पत्ती पत्ती धो जाए
मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही