देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़
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आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम
बन-बासियों में जलव-ए-गुलशन ले कर
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है
हिण्डोला
वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई
एक रंगीनी ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर