आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है
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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
शामें किसी को माँगती हैं आज भी 'फ़िराक़'
ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा
एक रंगीनी ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर